हरि त्रिलोक-पति पूरनकामी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
पनघट-लीला


हरि त्रिलोक-पति पूरनकामी। घट घट ब्यापक अंतरजामी।।
ब्रज-जुवतिनि को हेत बिचारयौ। जमुना कैं तट खेल पसारयौ।।
काहू की गगरी ढरकावैं। काहू की इंडुरी फटकावैं।।
काहू की गागरि धरि फोरैं। काहू के चित चितवत चोरैं।।
या बिधि सबके मनहिं मनावैं। सूर-स्याम-गति कोउ न पावैं।।1399।।

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