ब्रह्मा यौं नारद सौं कह्यौ। जब मैं नाभि-कमल मैं रह्यौ।
खोजत नाल कितौ जुग गयौ। तौहू मैं कछु मरम न लयौ।
भई अकासवानी तिहिं वार। तू वे चारि श्लोक विचार।
इन्हैं विचारत ह्वैहे ज्ञान। ऐसी भाँति कह्यौ भगवान।
ब्रह्मा सो नारद सौं कहे। ब्यास सोइ नारद सौं लहे।
ब्यास कह्यौ मौसौं विस्तार। भयौ भागवत या परकार।
सोई अब मैं तोसौं विस्तार। मयौ भागवत या परकार।
सोई अब मैं तोसौं भाषौं। तेरे हुदै न संसय राक्यौं।
मूल भागवत के येह चारि। सूर भली विधि इन्हैं विचारि।।37।।