जब हरि जू भए अंतर्धान -सूरदास

सूरसागर

तृतीय स्कन्ध

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राग सोरठि



जब हरि जू भए अंतर्धान। कहि ऊधव सौं तत्त्वज्ञान।
कह्यौ मयत्रेय सौं समुझाइ। यह तुम बिदुरहिं कहियौ जाइ।
बदरिकासरम दोउ मिलि आइ। तीरथ करत दोउ अलगाइ।
ऊधव-बिदुर तहाँ मिलि गए। दोऊ कृष्न-प्रेम-बस भए।
ऊधव कह्यौ, हरि कह्यौ जो ज्ञान। कहिहैं तुम्हैं मयत्रेय आन।
यह कहि ऊधव आगैं चले। बिदुर मयत्रेय बहुरौ मिले।
जौ कछु हरि सौं सुन्यौ सुज्ञान। कह्यौ मयत्रेय ताहि बखान।
सोइ मोहिं दियौ ब्यास सुनाइ। कहौं सो सूर सुनो चित लाइ।।4।।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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