सूर स्याम भक्तनि सुखदाइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल




हरि, हरि, हरि, सुमिरौ सब कोइ। नारि-पुरुष हरि गनत न दोइ।
द्रुपद-सुता को राखी लाज। कौरव पति कौ पारयौ ताज।
कहौं सो कथा, सुनौ चित लाइ। सूर स्‍याम भक्तनि सुखदाइ।।245।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः