नंदनँदन सुखदायक है -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भैरव


नंदनँदन सुखदायक है।
नैन सैन दै हरत नारि मन, काम कामतनु दायक है।।
कबहूँ रैनि बसत काहू कै, कबहुँ भोर उठि आवत है।
काहू कौ मन आपु चुरावत, काहू कै मन भावत है।।
काहू कै जागत सगरी निसि, काहूँ बिरह जगावत है।
सुनहु 'सूर' जोइ जोइ मन भावै, सोइ सोइ रँग उपजावत है।।2534।।

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