सखा कहन लागे हरि सौं तब। चलौ ताल-बन कौं जैऐ अव।
ता बन मैं फल बहुत सुहाए। वैसे हम कबहूँ नहिं खाए।
धेनुक असुर तहां रखवारी। चलौ कहौ हँसि बल बनवारी।
बिहँसत हरि संग चल गुवाला। नाचत गावत गुन-गोपाला।
सौयो हुतौ असुर तरु-छाया। सुनत सब्द तुरतहिं उठि धाया।
हलधर कौं देख्यौ तिन आए। हाथ दोउु बल करि जु चलाए।
पकरि पाइ बलधद्र फिरायौ। मारि ताहि तरु माहिं गिरायौ।
और बहुत ताकौ परिवारा। हरि-हलधर मिलि सबकौं मारा।
ग्वालनि वन-फल रुचि सौं खाए। बहुरौ बृंदाबनहिं सिधाए।
हरि-हलधर-छबि बरनि न जाई। सूरदास यह लोला गाई।।499।।