सूर तरौ हरि कै गुन गाइ -सूरदास

सूरसागर

तृतीय स्कन्ध

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राग बिलावल


श्रीशुक-वचन



हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारविंद उर घरौ।
सुकदेव हरि चरननि सिर भाइ। राजा सौं बोल्यौ या भाइ।
कहौं हरि कथा, सुनौ चित लाइ। सूर तरौ हरि कै गुन गाइ।।1।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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