प्रगट भए नँदनंदन आइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्हरौ


प्रगट भए नंदनंदन आइ।
प्यारी निरखि बिरह अति ब्याकुल धर तैं लई उठाइ।।
उभय भुजा भरि अंकम दीन्हौ, राखी कंठ लगाइ।
प्रानहु तैं प्यारी तुम मेरैं, यह कहि दुख बिसराइ।।
हँसत भए अंतर हम तुम सौं, सहज खेल उपजाइ।
धरनी मुरझि परीं तुम काहैं, कहां गई चतुराइ।।
राधा सकुचि रही मन जान्यौ, करयौ न कछू सुनाइ।
सूरदास-प्रभु मिलि सुख दीन्यौ, दुख डारयौ बिसराइ।।1128।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः