वंदौ चरन-सरोज तिहारे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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विनतो
राग केदारौ




वंदौ चरन-सरोज तिहारे।
सुंदर स्‍याम कमल-दल-लोचन, ललित त्रिभंगी प्रान-पियारे।
जे पद-पदुम सदा रिस के धन, सिंधु-सुता उर तैं नहिं टारे।
जे पद-पदुम तात-रिस-त्रासत, मन-बच-क्रम प्रहलाद सँभारे।
जे पद-पदुम-परस-बल-पावन-सुरसरि-दरस कटत अध भारे।
जे पद-पदुम-परस-रिषि-पतिनी बलि, नृग, व्‍याध पतित बहु तारे।
जे पद-पदुम-रमत वृन्‍दावन अहि-सिर धरि, अगनित रिपु मारे।
जे पद-पदुम परसि ब्रज-भामिनि सरबस दै, सुत-सदन विचारे।
जे पद-पदुम रमत पांडव-दल दूत भए, सब काज सँवारे।
सूरदास तेई पद-पंकज त्रिविध-ताप-दुख-हरन हमारे।।94।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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