बौद्ध रूप जैसे हरि धारयौ -सूरदास

सूरसागर

द्वादश स्कन्ध

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राग बिलावल
बुद्ध अवतार वर्णन



हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौ।।
बौद्ध रूप जैसे हरि धारयौ। अदिति सुतनि कौ कारज सारयौ।।
कहौ सु कथा सुनौ चित धार। कहै सुनै सो तरै भव पार।।
असुर इक समै सुक पै जाइ। कह्यौ सुरनि जीतै किहिं भाइ।।
सुक कह्यौ तुम जग बिस्तरौ। करिकै जज्ञ सुरनि सौ लरौ।।
याही विधि तुम्हरी जय होइ। या बिनु और उपाइ न कोइ।।
असुर सुक की आज्ञा पाइ। लागे करन जज्ञ बहु भाइ।।
तब सुर सब हरि जू पै जाइ। कह वृत्तांत सकल सिर नाइ।।
हरि जू तिनकौ दुखित देखि। कियौ तुरत सेवरी कौ भेष।।
असुरनि पास बहुरि चलि गए। तिनसौ बचन ऐसी विधि कए।।
जज्ञ माहिं तुम पसु यौ मारत। दया नहीं आवति सहारत।।
अपनौ सौ जिय सबकौ जानि। कीजै नहि जीवन की हानि।।
दया धर्म पालै जो कोई। मेरी मति ताकी जय होई।।
यह सुनि असुरनि जज्ञहि त्यागि। दया धर्म मारग अनुरागि।।
या बिधि भयौ अवतार। ‘सूर’ कह्यौ भागवतऽनुसार।। 2 ।।

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