अविगत गति जानी न परे।
राई तै परवत करि डारै, राई मेरु करै।।
नृग राजा नित गऊ सहस दै, करत हुतौ जल पान।
तनक चूक तै गिरगित कीन्हौ, को करि सकै बखान।।
कूप माहँ तिहि देखि बालकनि, हरि सौ कह्यौ सुनाइ।
कृपानिधान जानि अपनौ जन, आए तहँ जदुराइ।।
अंधकूप तै काढ़ि बहुरि तेहिं, दरसन दै निस्तारा।
'सूरदास' सब तजि हरि भजियै, जब कब करै उघारा।। 4199।।