हरि दरसन सत्नाजित आयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग
जाबवंती और सत्यभामा का विवाह



हरि दरसन सत्नाजित आयौ ।
लोगनि जान्यौ आदित आवत हरि सौ जाइ सुनायौ ।।
हरि कह्यौ आयौ है सत्नाजित मनि है ताकै पास ।
रवि प्रसन्न ह्वै दीन्हौ ताकौ, यह ताकौ परकास ।।
आइ गयौ सोऊ तिहिं अवसर, हरि तिहिं कह्यौ सुनाइ ।
यह मनि अति अनुपम है, सो सुनि दै न सक्यौ ललचाइ ।।
इक दिन तासु अनुज लै सो मनि, गयौ अखेटक काज ।
ताकौ मारि सिंह मनि लै गयौ सिंह हत्यौ रिछराज ।।
रिच्छराज वह मनि तासौ लै, जाबवती कौ दीन्ही ।
जब प्रसेन कौ बिलँब भई तब सत्नाजित सुधि लीन्ही ।।
जहाँ तहाँ कौ लोग पठाए, काहुँ खोज नहिं पायौ ।
तब लोगनि सौ कहन लग्यौ, जदुराइ ताहि मरवायौ ।।

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