हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
पौड्रकवध



हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ। हरि कैं सत्रु मित्र नहिं दोइ ।।
ज्यौ सुमिरै त्यौ ही गति होइ। हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ ।।
पौंड्रक अरु कासी के राइ। हरि कौ सुमिरयौ बैर सुभाइ ।।
अह निसि रहे यहै लव लाइ। क्यौ करि जीतौं जादवराइ ।।
द्वारावति तिनि दूत पठायौ। ताकौ ऐसी कहि समुझायौ ।।
चारिभुजा मम आयुध चारि। वासुदेव मैं ही निरधार ।।
यौ ही कहि जदुपति सौं जाइ। कपट तजौ कै करौ लराइ ।।
दूत आइ हरि सौ यह कह्यौ। हरि जू तिहि यह उत्तर दयौ ।।
जौ तै कही सो सब हम जानी। पौंड्रक की आयुस सियरानी ।।

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