सरस-निसि देखि हरि हरष पायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार
रास पंचाध्यायी आरंभ


सरस-निसि देखि हरि हरष पायौ।
विपिन वृंदा रमन, सुभग फूले सुमन, रास स्याम के मनहि आयौ।।
परम उज्वल रैनि, छिटकी रही भूमि पर, सद्य फल तरुनि प्रति लटकि लागे।।
तैसोई परम रमनीक जमुना-पुलिन, त्रिबिध बहै पवन आनंद जागे।।
राधिका रमन बन-भवन-सुख देखि कै, अधर धरि बेनु सु ललित बजाई।।
नाम लै लै सकल गोप-कन्यानि के, सबनि कै स्रवन वह धुनि सुनाई।।
सुबत उपज्यौ मैन, परत काहुं न चैन, शब्द सुनि स्रवन भई बिकल भारी।।
सूर-प्रभु ध्यान धरि कै चली उठि सबै, भजन-जन-नेह तजि घोष-नारी।।988।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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