जय अरु विजय पारषद होइ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग बिलावल
रामावतार


  
हरि हरि- हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि-चरनारविंद उर धरौ।
जय अरु विजय पारषद होइ। विप्र-सराप असुर भए सोइ।
एक बराह रूप धरि मारयौ। इक नरसिह-रूप संहारयौ।
रावन कुंभकरन सोइ भए। राम जनम तिनकैं हित लए।
दसरथ नृपति अजोध्या-राव। ताकैं गृढ़ कियौ आविर्भाव।
नृप सौं ज्यौं सुकदेव सुनायौ। सूरदास त्यौंही कहि गायौ।।15।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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