मतौ यह पूछत भूतलराइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री
दुर्योधन-वचन, भीष्‍म–प्रति




मतौ यह पूछत भूतलराइ।
सुनौ पितामह भीष्‍म, मम गुरु, कीजै कौन उपाइ ?
’उत अर्जुन अरु भीम पंडु-सुत, दोउ बर बीर गँभीर।
इत भगदत्त, द्रोन, भूरिश्रय, तुम सेनापति धीर।
जे जे जात, परत ते भूतल, ज्‍यौं ज्‍वाला-गत चीर।
कौन सहाइ, जानियत नाहीं, होत बीर निर्बीर।‘
’जब तोसौं समुझाइ कही नृप, तब ते करी न कान।
पावक जथा दहत सबही दल तूल-सुमेरु-समान।
अविगत, अविनासी, पुरुषोत्तम हाँकत रथ कै आन।
अचरज कहा पार्थ जौ बेधै, तीनि लोक इक बान।‘
’अब तौ हौं तकि आऔ, सोइ रजायसु दीजै।
जातैं रहै छत्रपन मेरौ, सोइ मंत्र कछु कीजै।
जा सहाइ पांडव-दल जीतौं, अर्जुन कौ रथ लीजै।
नातरु कुटुँब सकल संहरि कै कौन काज अब खीजै ?’
’‍तेरै काज करौं पुरुषारथ, जथा जीव घट माहीं।
यह न कहौं रन चढ़ि जीतौं, मो मति नहिं, अवगाही।
अजहूँ चेति, कहयौ करि मेरौ, कहत पसारे बाहीं।
सूरदास सरवरि को करिहै, प्रभु पारथ द्वै नाही’।।।269।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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