अमरराज सब अमर बुलाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी
अमर-स्तुति तथा कृष्णामि


अमरराज सब अमर बुलाए।
आज्ञा सुनि घर तै आए, कछु बिलंब न लाए।।
कौन काज सुरराज हँकारे, हमकौं आयसु होइ।
देखौ मेघवर्त्तकनि की गति, ब्रज तैं आए रोइ।।
गोबरधन की पूजा कीन्हीं, मोहि डारयौ बिसराइ।
मेघवर्त्त, जलवर्त्त पठाए, आवहू ब्रजहि बहाइ।।
धार अखंडित बरषि सात दिन, ब्रज पहुँची नहिं बुंद।
सुरनि कही गोकुल प्रगटे हैं, पूरन ब्रह्म मुकुंद।।
मोसौ क्यौं न कही तुम तबहीं, गोकुल हैं ब्रजराज।
सूरदास प्रभु कृपा करहिंगे, सरन चलौ दिवराज।।973।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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