जो सुख स्याम प्रिया सँग कीन्हौ। सो जुवतिनि अपनौ करि लीन्हौ।।
दुविधा हृदय कछू नहिं राख्यौ। अति आनंद बचन मुख भाष्यौ।।
यहै कहतिं तब की अब नीकै। सकुचि हँसि नागरि सँग पीकै।।
नैनकोर पिय हृदय निहारयौ। उन पहिलेहि पीतांबर धारयौ।।
'सूरदास' यह लीला गावै। हरि-पद-सरन अछै फल पावै।।2473।।