चरन-कमल बंदौ हरि राइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
मंगलाचरण


चरन-कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौ सब कछु दरसाइ।
बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्‍वामी करुनामय, बार बार बंदौ तिहिं पाइ।।1।।


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