आजु दसरथ कैं आँगन भीर
ये भू-भार उतारन कारन प्रगटै स्याम-सरीर।
फूले फिरत अजोध्या-वासी, गनत न त्यागत चीर।
परिरंभन हँसि देत परस्पर, आनंद-नैननि नीर।
त्रिदस-नृपति, रिषिव्यौम-विमाननि-देखता रह्यौ न धीर।
त्रिभुवन-नाथ दयाल दरस दै, हरी सवनि की पीर।
देत दान राख्यौ न भूप कछु, महा बड़े नग हीर।
भए निहाल सूर सब जाचक, जै जाँचे रघुबीर।।16।।