महराने तैं पाँड़े आयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री
पाँडे़ आगमन



महराने तैं पाँड़े आयौ।
ब्रज घर-घर बूझत नंद-राउर पुत्र भयौ, सुनि के उठि धायौ।
पहुँच्‍यौ आइ नंद के द्वारैं, जसुमति देखि अनंद बढ़ायौ।
पाँइ धोइ भीतर बैठारयौ, भोजन कौं निज भवन लिपायौ।
जो भावै सो भोजन कीजै, बिप्र, मनहिं अति हर्ष बढ़ायौ।
बड़ी बैस बिधि भयौ दाहिनौ, धनि जसुमति ऐसौ सुत जायौ।
धेनु दुहाइ, दूध ले आई, पाँडे़ रुचि करि खीर चढ़ायौ।
घृत, मिष्‍ठान्न, खीर मिस्रित करि, परुसि कृष्‍न-हित ध्‍यान लगायौ।
नैन उधारि बिप्र जौ देखै, खात कन्‍हैया देखन पायौ।
देखौ आइ जसोदा, सुत-कृति, सिद्ध पाक इहि आइ जुठारयौ।
महरि बिनय करि दुहुँ करि जोरे, धृत-मधु-पय फिरि बहुत मँगायौ।
सूर स्‍याम कत करत अचगरी, बार-बार बाम्‍हनहिं खिझायौ।।248।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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