आँगन मैं हरि सोइ गए री।
दोउ जननी मिली कै, हरुऐं करि, सेज सहित तब भवन लए री।
नैंकु नहीं घर मैं बैठन हैं, खेलहि, के अब रंग रए री।
इहिं बिधि स्याम कबहुँ नहिं सोए बहुत नींद के बसहिं भए री।
कहति रोहिनी सोवन देहु न, खेलत दौरत हारि गए री।
सूरदास प्रभु कौ मुख निरखत, हरखत जिय नित नेह नए री।।247।।