नैननि निरखि स्याम-स्वरूप -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग केदारौ
विराट-रूप-वर्णन



नैननि निरखि स्याम-स्वरूप।
रह्यौ घट-घट व्यामि सोई, जीति-रूप अनूप।
चरन सप्त पताल जाके, सीस है आकास।
सूर-चंद्र-नछत्र पावक, सर्ब तासु प्रकास।।27।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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