नंदहि कहति जसोदा रानी। सुरपति पूजा तुमहिं भुलानी।
यह नहिं भली तुम्हारी बानी। मैं गृह-काज रहौं लपटानी।।
लोभहिं लोभ रहे हौ सानी। देव-काज की सुधि बिसरानी।।
महरि कहति पुनि-पुनि यह बानी। पूजा के दिन पहुँचे आनी।।
सूरदास जसुमति की बानी। नंदहिं खीझि-खीझि पछितानी।।884।।