बिदुर सु धर्मराइ अवतार-सूरदास

सूरसागर

तृतीय स्कन्ध

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राग बिलावत


बिदुर-जन्म



बिदुर सु धर्मराइ अवतार। ज्यौं भयौ, कह्यौं, सुनौं चित धार।
मांडव ऋषि जब सूली दियौ। तब सो काठ हरों ह्वै गयौ।
मांडव धर्मराज पै आयौ। क्रोधवंत यह बचन सुनायौ।
कौन पाप मैं ऐसौ कियौ। जातै मोकौं सूलीं दियौ।
धर्मराज कह्यौ, सुनु ऋषिराइ। छमा करौ तौ देउँ बताइ।
बाल-अवस्था मैं तुम धाइ। उड़ति भँमीरी पकरीं जाइ।
ताहि सूल पर सूली दियौ। ताकौ बदलौ तुमसौ लयौ।
ऋषि कह्यौ, बाल-दसा अज्ञान। भयौ पाप मोतैं बिनु जान।
बलापन कौ लगत न पाप। तातै देउँ तुम्हैं मैं साप।
दासी-पुत्र होहु तुम जाइ। सूर बिदुर भयौ सो इहि भाइ।।5।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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