देखौ भाई बदरनि की बरियाई।
कमल नैन कर भार लिए हैं, इंद्र ढीठ भरि लाई।
जाकै राज सदा सुख कीन्हौं, तासौं कौन बड़ाई।
सेवक करे स्वामि सौं सरवरि, इक बातनि पति जाई।
इंद्र ढीठ बलि खात हमारी, देखौ अकिल गँवाई।।
सूरदास तिहिं वन काकौ डर, जिहिं बन सिंह सहाई।।953।।