ऊधौ आवै यहै परेखौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


 
ऊधौ आवै यहै परेखौ।
जब बारे तब आस बड़े कौ, बड़े भऐ यह देखौ।।
जोग, यज्ञ, तप, नेम, दान, व्रत, यहै करन तब जात।
क्यौ हूँ बालक बढ़ै कुसल सौ, कठिन मोह की बात।।
करी जु प्रगट कपट पिक कीरति, आपु काज लगि तीर।
काज सरै उड़ि मिले आपु कुल, कहा बयस कौ पीर।।
जहँ जहँ रहौ राज करौ तहँ तहँ, लेहु कोटि सिर भार।
यहै असीस ‘सूर’ प्रभु सौ कहि, न्हात खसै जनि बार।।3659।।

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