कमल नैन की अवधि सिरानी, अजहूँ भयौ न आवन।
निसि बासर हौ सगुन मनावति, मिलहु कृपा करि भावन।।
सबै स्वदेस विदेसी आए, बृच्छ पखेरू छावन।
मानौ विरह बिवाहन आयौ, क्रीड़ा मंगल गावन।।
ता महँ मोर घटा घन गरजहिं, संग मिलै तिहिं सावन।
भरि भादौ वै छाइ घोषपति, नारिनि दुख बिसरावन।।
बिनु देखे कल परै न इक छिन, वह मूरति चित चावन।
'सूरदास' प्रभु ठानी ऐसी, बैरी कंस ज्यौ रावन।।3661।।