स्याम हंसि बोले प्रभुता डारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिहागरौ


स्याम हँसि बोले प्रभुता डारि।
बारंबार बिनय कर जोरत, कटि-पट गोद पसारि।।
तुम सनमुख मैं विमुख तुम्हारौ, मैं असाधु, तुम साध।
धन्य-धन्य कहि कहि जुवतिनि कौं, आपु करत अनुराध।।
मोकौं भजीं एक चित ह्वैकै, निदरि लोक-कुल-कानि।
सुत-पति-नेह तीरि तिनुका सम, मोहीं निज करि जानि।।
जाकै हाथ पेड़ फल ताकौं, सो फल लेहु कुमारि।
सूर कृपा पूरन सौं बोले, गिरि-गोबरधन-धारि।।1033।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः