मोहिं बिना ये और न जानैं।
बिधि मरजाद लोक की लज्जा, तृनहू तैं घटि मानैं।।
इनि मोकौं नीकैं पहिचान्यौ, कपट नहीं उर राख्यौ।
साधु-साधु नीकैं पहिचान्यौ, कपट नहीं उर राख्यौ।
पुनि हँसि कह्यौ निठुरता धरि कै, क्यौं त्याग्यौ कुल-धर्म।
सूर स्याम मुख कपट, हृदय रति, जुवतिनि कैं अति भर्म।।1032।।