कहत स्याम श्रीमुख यह बानी।
धन्य-धन्य दृढ़ नेम तुम्हारौ, बिनु दामनि मो हाथ बिकानी।।
निरदय बचन कपट के भाखे, तुम अपनैं जिय नैंकु न आनी।
भजीं निसंक आइ तुम मोकौं, गुरुजन की संका नहिं मानी।।
सिंह रहै जंबुक सरनागत, देखी सुनी न अकथ कहानी।
सूर स्याम अंकम भरि लीन्हीं, बिरह-अग्नि झर तुरत बुझानी।।1034।।