स्याम कर भामिनी मुख सँवारयौ।
बसन तनु दूरि करि, सबल भुज अंक भरि, कामरिस बस बाम निदरि धारयौ।।
अधर दसननि भरे, कठिन कुच उर लरे, परे सुख सेज मनु मुरछि दोऊ।
मनौ कुम्हिलाइ रहे मैन सौ मल्ल दोउ, कोकपरबीन घटि नहीं कोऊ।।
अंग बिह्वल भए, नैन नैननि नए, लजित रति अंत तिय कंत भारी।
'सूर' धनि धन्य सुखमा-नारि-बस स्याम, जाम जुग भई पति तै न न्यारी।।2497।।