चंद्रावली स्याममग जोवति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


चंद्रावली स्याममग जोवति।
कबहुँ सेज कर झारि सँवारति, कबहुँ मलयराज भोवति।।
कबहुँ नैन अलसात जानिकै, जल लै पुनि पुनि धोवति।
कबहुँ भवन, कबहूँ आँगन ह्वै, ऐसैं रैनि बिगोवति।।
कबहुँक बिरह जरति अति बयकुल, आकुलता मन मोवति।
'सूर' स्याम बहु रवनिरवन पिय, यह कहि कहि गुन तोवति।।2498।।

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