स्याम गए सुखमा कै धाम। देखत हरष भई मन बाम।।
आतुर मंदिर गए समाइ। प्यारी प्रेम उठो भहराइ।।
स्याम भामिनी परम उदार। कोक-कला-रस करति बिचार।।
बोलत पिय, नहि आवति पास। गदगद बानी कहति उदास।।
धाइ जाइ पति अंकम लाइ। हा हा कहि कहि लेत बलाइ।।
अति आतुर पति कै गति काम। कहा प्रकृति पाई यह बाम।।
बाहँ गहत कीन्हौ धनि मान। तब हरि कीन्हौ एक सयान।।
उन प्यारी चरननि सिर धारी। कामव्यथा जान्यौ सुकुमारी।।
अल्प हँसी, मुख हेरि लजानी। 'सूरज' प्रभु तिय मन की जानी।।2496।।