स्यामहि सुख दे राधिका निज धाम सिधारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


स्यामहि सुख दे राधिका निज धाम सिधारी।
चित तै कहुँ उतरत नही श्रीकुंजबिहारी।।
रैनि बिपिन रतिरस रह्यौ सो मनहि बिचारै।
पिय सँग के अँग चिह्न जे दरपनहि निहारै।।
इहिं अतर चंद्राबली राधा गृह आई।
अंग सिथिल छवि देखि कै जहँ तहँ भरमाई।।
कह्यौ चहति कहत न बनै मन मन अनुमाने।
'सूर' स्याम सँग निसि बसी, निहचै इह जानै।।2651।।

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