चंद्रावलि सखियनि सँग लीन्हे, राधा कै गृह आई (हो)।
आजु अंग सोभा कछु औरै, हरिसँग रैनि बिहाई (हो)।।
अब तौ नहीं दुराव रह्यौ कछु, कहौ साँच हम आगै (हो)।
अधर दसन छत, उरजनि नख छत, पीक पलक दोउ पागे (हो)।।
हम जानी तुम कहौ प्रगट करि, स्यामसंग सुख माने (हो)।
सुनहु 'सूर' हम सखी परस्पर, क्यौ न रैनि जस गाने (हो)।।2652।।