सोइ उठी वृषभानु किसोरी।
जम्हुआनी अरसाइ मोरि तनु ठाढी उलटि उभय कर तोरी।।
बिबिकर बीच बदन यौ राजत मोहे मोहन प्रीति न थोरी।
नाल सहित मनु जलज जुगल निज मधि बाँध्यौ बिधु बैर बहोरी।।
तिहिं छिन कछुक उरोज उदय भए सोभा सुभग कहै कवि को री।
मनु द्वै कमल सहाइ सहित अलि उठे कोपि जिय संक न जोरी।।
तापर लोचन चारु बने अति अरुन कोर त्रिभुवनछवि छोरी।
'सूरदास' इंदीवर विय मनु बिरचि लरे ससि सौ दल जोरी।। 77 ।।