आली री पीरी यह भई है निकसि ठाढि भई द्वार कुज ऐन के।
नथ खैच्यौ बदन निरखत ही जी मो जान्यौ चंद्रमा तातै धोखे रैन के।।
नैन कुरंग जानि जिय मैं आयौ सतभाव आधौ बिंदुति आधौ इत रह्यौ चैन के।
'सूरदास' साखि स्याम मोतर माल तारागन और उपमा को देखि मदन मोहन पीय सग सुख मैन के।। 76 ।।