सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 83

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-83

विनय राग


167.राग आसावारी
स्‍याम-बलराम कौं सदा गाऊँ।
स्‍याम-बलराम बिनु दूसरे देव कौं, स्‍वप्‍न हूँ माहिं नहिं हृदय ल्‍याऊँ।
यहै जप, यहै तप, यहै मम नेम ब्रत, यहै मम प्रेम, फल यहैं ध्‍याऊँ।
यहै मम ध्‍यान, यहै ज्ञान, सुमिरन यहै, सूर प्रभु देहुँ हौ यहै पाऊँ।

168.राग देवगंधार
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसैं उड़ि जहाज कौ पच्‍छी फिर जहाज पर आवं।
कमल-नैन कौ छौड़ि महातम, और देव कौं ध्‍यावै।
परम गंग कौं छाड़ि पियासौ दुरामति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाल्‍यौं, क्‍यौं करील फल भावै।
सूरदास-प्रभू कामधेनु तजि, छेरो कौन दुहावै।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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