सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 84

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-84

विनय राग


169.राग सारंग
तुम्‍हारी भक्ति हमारे प्रान।
छूटि गऐं कैसे जन जीवत, ज्‍यौं पानी बिनु प्रान।
जैसैं मगन नाद-रस सारँग, बधत बधिक बिन बान।
ज्‍यौं चितवत ससि ओर चकोरी, देखन ही सुख मान।
जैसें कमल होत अति प्रफुलित, देखत दरसन भान।
सूरदास-प्रभु-हरि -गुन मीठे, नित प्रति सुनियत कान।

170.राग धनाश्री
जौ हम भले बुरे तौ तेरे ?
तुम्‍हैं हमारी लाल-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे।
सब तजि तुम सरनागत आयौ, दृढ करि चरन गहे रे।
तुम प्रताप-बल बदत न काहूँ, मिडर भए घर-चेरे।
और देव सब रंक-भिखारी, त्‍यागे बहुत अनेरे।
सूरदास प्रभु तुम्‍हरी कृपा तै, पाए सुख जु धनेरे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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