सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 59

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 59

विनय राग


119.राग आसावरी
पतितपावन जानि सरन आयो
उदघि-संसार सुभ नाम-नौका तरन, अटल अस्‍थान निजु निगम गयौ।
ब्‍याघ अरु गीध, गनिका, अजामील द्विज चरन गौतम तिया परसि पायौ।
अंत औसर अ ध नाम उच्‍चार करि सुम्रत गज ग्राह तै तुन छुड़ायौ।
अबल प्रहलाद, वलि दैत्‍य सुखही भजत, दास ध्रुव चरन सीस नायौ।
पांडु-सुत विपति-मोचन महादास लखि, द्रौपदी-चीर न ना बढ़ायौ।
रुर प्रभु-चरन चित चेति चेतन करत, व्रह्म-सिव-सेस-सुद-सनक ध्‍यौ।

120.राग आसावरी
(श्री) नाथ सासंगधर कृपा करि दीन पर, डरत भव-त्रास तै राखि लीजै।
नाहिं जप, न हिं तप, नाहिं मुमिरन-भजन, सरन आए की अब लाज कीजै।
जीव जल थल जिते, वेष धरि धरि तितै, अटत दुरगम अगम अचल मारे।
मुसल मुदगर हनत, त्रिबिध करमनि गनत, मोहिं दंडत धरम-दूत हारे।
वृषभ, केसी, प्रलव, धेनुअकरु पूतना, रजक चानूर से दुष्‍ट तारे।
अजामिल ग्रनिका तै मैं घाट कियौ तुम जो अब सूर चि तै विसारे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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