सुनि मधुप कौन कौ काज कौन पायौ।
राज रिपु चमू घसि पैठि जन पद लियौ, जीति बिनु कपट दुदभि बजायौ।।
सुभट के सुभट रन जीत रन बिबस भए, फिरे नृप दसहुँ दिसि दव लगायौ।
ऐसी करुना किये लेत बिच राखि कै, सप्त मुख सेन सजि सचिव धायौ।।
बली बल साजि बाजित्र बहु बाजहिं, कहा करै ईस पगु न ठहरायौ।
नवल बय बेष सम सील गुन रूप सम, गवन कौ हेत कछु मन सुनायौ।।
इतै जैसौ कपट तितहुँ तैसौ कपट, सो कहत नाथ सौ क्यौ बसायौ।
‘सूर’ सयोग रसधर्म के हेत जौ, प्रीति के हेत तिन तन बनायौ।। 196 ।।