तुम बिनु हम अनाथ ब्रजबासी -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग सोरठ




तुम बिनु हम अनाथ ब्रजबासी।
इतौ संदेसौ कहियौ ऊधौ, कमल नयन बिनु त्रासी।।
जा दिन तै तुम हमसौ बिछुरे, भूख नींद सब नासी।
बिहबल बिकल कलहुँ न परत तन, ज्यौ जल मीन निकासी।।
गोपी ग्वाल बाल बृंदावन, खग मृग फिरत उदासी।
सबही प्रान तज्यौ चाहत है, का करवत को कासी।।
अंचल छोरि करति मिलिबे की बिनती ये सब दासी।
हमरौ प्रानघात ह्वै निबरे, तुम्हरे जानै हाँसी।।
मधुकर कुसुम न तजत सखी री, छाँड़ि सकल अविनासी।
‘सूर’ स्याम बिनु यह तन सूनौ, ससि बिनु रैनि उदासी।। 197 ।।

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