सुनत अक्रूर यह बात हरषे।
स्याम बलराम कौ तुरत भोजन दियौ, आपु असनान कौ नीर परसे।।
गए कटि नीर लौ नित्य संकल्प करि, करत अस्नान इक भाव देख्यौ।
जैसेइ स्याम बलराम स्यंदन चढ़े, वहै छवि कुंभरस माझ पेख्यौ।।
चकित भये कबहुँ तीर पुनि जल निरखि, घोष अकूर जिय भयौ भारी।
'सूर' प्रभु चरित मैं थकित अतिही भयौ, तहाँ दरसि नित-थल-बिहारी।।3015।।