सुफलकसुत दुख दूरि करयौ।
जमुना तीर कियौ रथ ठाढ़ौ आपुहिं प्रगट हरयौ।।
तिनहिं कह्यौ तुम स्नान करौ ह्याँ हमहिं कलेऊ देहु।
भूख लगी भोजन हम करिहै, नेम सारि तुम लेहु।।
तब लौ नंद, गोप सब आवै, संग मिले सब जैहै।
'सूरदास' प्रभु कहत है पुनि पुनि, तब अतिही सुख पैहै।।3014।।