सुंदर स्याम कमल-दल-लोचन।
बिमुख जननि की संगति कौ दुख, कब धौ करिहौ मोचन।।
भवन मोहि भाटी सौ लागत, मरति सोचही सोचन।
ऐसी गति मेरी तुम आगै, करत कहा जिय दोचन।।
धिक वै मातुपिता, धिक भ्राता, देत रहत मोहि खोचन।
'सूर' स्याम मन तुमहि लगान्यौ, हरद-चून-रँग-रोचन।।1942।।