कुल की कानि कहाँ लगि करिहौ।
तुम आगै मैं कहौ जु साँची, अब काहू नहिं डरिहौ।।
लोग कुटुंब जग के जे कहियत, पेला सबहिं निदरिहौ।
अब यह दुख सहि जात न मोपै, बिमुख बचन सुनि मरिहौ।।
आपु सुखी तौ सब नीके हैं, उनके सुख कह सरिहौ।
'सूरदास' प्रभु चतुर सिरोमनि, अबकै हौ कछु लरिहौ।।1943।।