मातु पिता अति त्रास दिखावत।
भ्राता मोहिं मारन कौं धिरावै, देखै मोहिं न भावत।।
जननी कहति बड़े की बेटी, तोकौ लाज न आवति।
पिता कहै कैसी कुल उपजी, मनही मन रिस पावति।।
भगिनी देखि देति मोहिं गारी, काहै कुलहि लजावति।
'सूरदास' प्रभु सौ यह कहि कहि, अपनी बिपति जनावति।।1941।।