कुल की लाज अकाज कियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


कुल की लाज अकाज कियौ।
तुम बिनु स्याम सुहात नही कछु, कहा करौ अति जरन हियौ।।
आपु गुप्त करि राखी मोकौ, से आयसु सिर मानि लियौ।
देह-गेह-सुधि रहति बिसारे, तुम तै हितु नहिं और बियौ।।
अब मोकौ चरननि तर राखौ, हँसि नँदनंदन अंग छियौ।
'सूर' स्याम श्रीमुख की बानी, तुम पै प्यारी बसत जियौ।।1940।।

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