कुल की लाज अकाज कियौ।
तुम बिनु स्याम सुहात नही कछु, कहा करौ अति जरन हियौ।।
आपु गुप्त करि राखी मोकौ, से आयसु सिर मानि लियौ।
देह-गेह-सुधि रहति बिसारे, तुम तै हितु नहिं और बियौ।।
अब मोकौ चरननि तर राखौ, हँसि नँदनंदन अंग छियौ।
'सूर' स्याम श्रीमुख की बानी, तुम पै प्यारी बसत जियौ।।1940।।