सांचौ सो लिखहार कहावै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राम धनाश्री



साँचौ सो लिखहार कहावै।
काया-ग्राम मसाहत करिकै, जमा बाँधि ठहरावै।
मन-महतो करि कैद अपने मैं, ज्ञान-जहतिया लावै।
माँड़ि माँड़ि खरिहान क्रोध कौ, पोता-भजन भरावै।
बट्टा काटि कसूर भरम कौ, फरद तलै लै डारै।
निहचै एक असल पै राखै, टरै न कबहूँ टारै।
करि अवारजा प्रेम प्रीति कौ, असल तहाँ खतियावै।
दूजे करज दूरि करि दैयत, नैकु न तामैं आवै।
मुजमिल जोरै ध्‍यान कुल्‍ल कौ, हरि सौं तहँ लै राखै।
निर्भय रुपै लोभ छाँड़िकै, सोई वारिज राखै।
जमा-खरच नीकैं करि राखै, लेखा समुझि बतावै।
सूर आपु गुजरान मुहासिब, लै जवाब पहुँचावै।।।142।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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